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देहरादून: नशा मुक्ति केंद्र में मरीज की हत्या, सुरक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल

देहरादून स्थित एक नशा मुक्ति केंद्र में हत्या की सनसनीखेज वारदात ने एक बार फिर प्रदेश के नशा मुक्ति केंद्रों की कार्यप्रणाली और निगरानी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोपियों ने नशा मुक्ति केंद्र की पाबंदियों से तंग आकर एक मरीज की चम्मच से गोदकर हत्या कर दी, जिससे प्रदेश में संचालित ऐसे केंद्रों की सुरक्षा और व्यवस्था को लेकर चिंता और गहरा गई है।

जानकारी के अनुसार, मृतक अजय कुमार को शराब की लत के कारण 8 अप्रैल को केंद्र में भर्ती कराया गया था। वह चलने-फिरने में असमर्थ थे। आरोपी गुरदीप सिंह और हरमनदीप सिंह, दोनों बठिंडा (पंजाब) के रहने वाले हैं और पहले भी केंद्र में भर्ती रह चुके थे। संचालक रविंद्र कुमार के अनुसार, आरोपियों ने सीसीटीवी के चलते पहले रात को उनकी हत्या की योजना टाल दी और अगले दिन अजय कुमार को निशाना बनाया।

हत्या के पीछे आरोपियों की मंशा जेल जाना बताई गई है, ताकि उन्हें नशा मुक्ति केंद्र की सख्त पाबंदियों से छुटकारा मिल सके। पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने यह बात स्वीकार की है। मृतक अजय कुमार के बेटे में एक उत्तर प्रदेश पुलिस में उपनिरीक्षक हैं, जबकि दूसरा एक निजी विश्वविद्यालय में मार्केटिंग मैनेजर है। उनकी पत्नी एक प्राथमिक स्कूल में अध्यापक हैं।

मानसिक स्वास्थ्य नियमावली लागू, पर पालन कमजोर

प्रदेश में जुलाई 2023 से मानसिक स्वास्थ्य नियमावली लागू की गई थी, जिसके तहत नशा मुक्ति केंद्रों का पंजीकरण, नियमित निरीक्षण और विशेषज्ञों की नियुक्ति अनिवार्य की गई। नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने और सजा का प्रावधान भी किया गया है, लेकिन निगरानी की व्यवस्था अभी भी बेहद लचर साबित हो रही है। देहरादून जिले में ही 84 नशा मुक्ति केंद्र पंजीकृत हैं, लेकिन नियमित निरीक्षण नहीं हो पाने के कारण केंद्रों में नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं।

जिला मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की ओर से समय-समय पर निरीक्षण की बात कही जाती है, लेकिन अक्सर सभी विभागों और एनजीओ प्रतिनिधियों की उपलब्धता न होने के कारण निरीक्षण टल जाते हैं। इससे केंद्रों की कार्यशैली पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।

सख्त नियम, फिर भी खामियां

नियमों के तहत मरीजों को परिजनों से संपर्क की सुविधा, केंद्र की फीस व मेन्यू की पारदर्शिता, डॉक्टर की देखरेख में इलाज और डिस्चार्ज की प्रक्रिया निर्धारित है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग नजर आ रही है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि मानसिक स्वास्थ्य नियमावली का सख्ती से पालन होता, तो इस तरह की हिंसक घटनाओं को रोका जा सकता था।

सरकारी दावा और हकीकत में फासला

स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि राज्य स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन किया गया है जो केंद्रों का पंजीकरण व निगरानी करता है। वहीं सीएमओ डॉ. मनोज कुमार शर्मा ने कहा कि शीघ्र ही सभी नशा मुक्ति केंद्रों का निरीक्षण किया जाएगा और नियमों के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया है कि जब तक इन नियमों को पूरी ईमानदारी और सक्रियता से लागू नहीं किया जाएगा, तब तक नशा मुक्ति केंद्रों में ऐसी घटनाएं थमती नहीं दिखेंगी।

हिमालयन लाइव ब्यूरो

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